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पृष्ठ:बीजक.djvu/३६१

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शब्द । ( ३११) अथ पचपनवां शब्द ॥५५॥ | नलको ढाढ़स देखो आई। कछु अकथ कथा है भाई ॥१॥ सिंह शार्दुल यक हर जोतिनि सीकस वोइन धाना। वनकी भलुइया चाखुर फेरै छागर भये किसाना ॥ २॥ कागा कपरा धोवन लागे बकुला किररै दांता ।। माछी मूड़ मुड़ावन लागी हमहूं जाव वराता ॥ ३॥ छेरी वाघहि ब्याह होत है मंगल गावै गाई ।। बनके रोझ धै दाइज दीन्हो गोह लोकंदै जाई ॥ ४ ॥ कहै कबीर सुनहो संतो जो यह पद अवै । सोई पंडित सोई ज्ञाता सोई भक्त कहावै ॥ ६॥ जिनको सद्गुरु मिले तिनको या भांतिउद्धार है गयो औ जिनको सद्गुरु नहीं मिले जे सद्गुरुको नहीं मान्य तिनको गुरुवा लोग और और मतमें लगाइदेइ हैं वे साहब को नहीं जानै हैं सो वीरजी कहै हैं । नलको ढाढ़स देखो आई। कछु अकथ कथाहै भाई॥१॥ | साहब कहते हैं कि, हे भाई! हेसंतौ ! ढाढ़सदेखो यहजीव मेरो अंशह सो मोको नहीं जाने है और औरमें लागि कै खराब होई है नाना दुःखसहै है मोको जानिकै दुःख नहीं त्यागकरै है बड़ो ढाढ़सी है । सो हे भाइउ ! दाढ़स करिकै जौनेके लिये नामें यह लागै है सो ब्रह्म अकथ कथा है कहिबे लायक नहीं है । वह ब्रह्म विचार झूठा है वहां कछु प्राप्ति नहीं है सो अकथ कथा कहै हैं ॥ १ ॥ सिंहशार्दुल यकहरजोनिनि सीकस वोइनि धाना । वनकी भलुइया चाखुरफेरै छागरभयेकिसाना ॥२॥ यहां सिंह जो है जीव शार्दूल जो है मन येई दोङ बैल हैं । कर्म जो हैं । सोई हर संसार सीकस भूमि है कहे ऊपर भूमि है । अजा कहावै है माया सोई