पृष्ठ:बीजक.djvu/३६३

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शब्द । | अव व्याहको रूपक कहे हैं । गुरुवा लोग जे हैं तेई पुरोहित हैं उपदेश करन वारे ते छेरी जो है माया ताको औ बाध जो है जीव ताका व्याह होतहै अर्थात् जीवको मायामें डारिदेइ हैं । औ छेरी जो है माया ताको वाघ जो है जीव सो खाइलेनवारो है अर्थात् जो जीव आपने स्वरूपको जानै ती मायाको नाश करिदेई । अरु तहांगायरूपी ने गायत्री है सो मंगल गावै है अर्थात् सब जीवको कर्तव्य गायत्री गावे है वेद गायत्री ते कह्या है औ वन कहे वाणीकों रोझ जो है प्रणव ताको दाइज दीन्हो । यहां रोझको प्रणव काहेते कह्यो | कि, रोझ गवे कहाँ हैं काहेते कि, गोकी सदृश होइ है । सो गैया जो है गायत्री ताके सदृश प्रणवही है अर्थात् वह गायत्री प्रणवही ते निकसी है । प्रणव ब्रह्म है ताको दाइज दीन्हो कहे ब्रह्म मैंहीं हैं । यही प्रणवको अर्थ समुझाइ दीन्हो । कन्याकेसाथ जो डोलहाई जाइ हैं तेलोकंदी कहावै हैं से यह लोकोक्ति है मिथिलाकैती कहै हैं सो गोह जो है सो लोकंदै जाइ है कह डोलाके साथ जाइ है । वहां गोह कहे गो जो इंद्रिय हैं। जब जीव मायामें लपेटै तब और चंचल हैनाई है नाना शरीररूप डोलामें चढ़ा जीव ताहीके साथ साथ जाइ है ॥ ४ ॥ कहै कबीर सुनौ हो संतो ! जो यह पद अर्थावै । सोई पंडित सोई ज्ञाता सोई भक्त कहावै ॥६॥ । सो कबीरजी कहै हैं कि, यह साहबको कह्यो जो यह पद है ताको हे | संतौ ! तुम सुनौ इस पदमें ने भ्रम वर्णन कियो तिनको छोड़िकै यह पदको अर्थ सांच जो साहब ताको जानै असांच को छोड़े सोई पंडित है सोई ज्ञाता है। सोई भक्त है ॥ ५ ॥ इति पचपनवां शब्द समाप्त ।