पृष्ठ:बीजक.djvu/३६६

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( ३१६) बीजक कबीरदास । भक्ति आदिक जे ते सब विषय हैं या हेतुते कि, जामें जामें मन लँगैहै ते सब मनके विषय हैं । ते सब बिकारई हैं औ जो “यहै पेठ उत्पत्ति प्रलयको सौदा सबै विकारीऐसो पाठ होइ तौ यह अर्थ पेठ नाऊं हाटको यह देश भाषाहै सों अनन्त कोटि ब्रह्माण्डनके उत्पात्त प्रलय को माया ब्रह्म दोनों तरफकी पेठ कहे बजारहैं । सो यह जगत् शहरहै विषयरूपी सौदा जो है ताके संसारी जीव लगवारे हैं सो जैसे श्वान ( कुत्ता) सो अपावन जो हाड़है ताको चाटैहै तब वहींके दांतते लोहू निकसै है सो हाड में लगे है सोऊ चाटतै जायेहै, वही में रानी हैहै; तैसे यह आत्मा अपने भ्रममें पहै वहीको भ्रम नाना विषयमें सुखरूप देखो परैहै । सो बिषयतो जहै बिषय में सुख नहीं है याहीको सुख बिषयन में जाइरहै है आपनोई सुख विषयमें पावै है अरु मानै है कि, मैं बिषयको सुखप्राऊ हौं अपर वह ब्रह्मको अनुभव कियो तहां वाके आत्मैको सुख मिले है। जानै यह है कि, मोको ब्रह्मानन्द भयोहै । काहेते कि, जब भर अहं ब्रह्म बुद्धि हैहै तवभर तो मूलाज्ञान ठहराइ है जब सबको निराकरण है गयो एक आत्मा ही को ज्ञान रहिगंयो सो ब्रह्मानंद रूप होइहै तेहिते वहब्रह्मानन्द आत्माहीकों आनन्द सो जैसे श्वान आपनेही लोहूके स्वादते हाड़को चाटैहै तैसे यह आप नो सुख विषय ब्रह्ममें पाईंकै भूलि रह्यो संसारी ज्ञान याके लगी रह्यो है ॥४॥ कह कवीर यह अद्भुत ज्ञाना मानो वचन हमारो । अजहूं लेहुं छोड़ाय कालसों जो घट सुरति सँभारो ५ | सौ हे कबीर कायाके बार जीवा ! हम तुमसे यह अद्भुत ज्ञान कहहैं हमारो बचन मानौ जो अपने घरमें सुरति सँभारो औ वह सुरति मोमें लगावों तौ अबहू कहे माया ब्रह्ममें तुम परेही ताहूपर तुमको मैं कालते छोड़ायले अथवा अजहूं को भाव यह है कि, कालकी दाढ़ में तुम परिचुके हौ सो कालते तुमको छोड़ाइ लेउँगो ॥ ५ ॥ इति छप्पनवां शब्द समाप्त । =