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शब्द । ( ३६७) नाड़ी हैं तिनको सुषुम्णारूपी राहु ग्रास देईहै अर्थात् ग्रसन करावै है वहीं सुषु म्णामें लीन कै देईहै। जब समाधि लगी तब सुरभी जोहै गायत्री माया कुंडलिनी शक्ति सो वेदमुख बाणी भक्षण कैलियो अर्थात बाणी रहित वैगयो। ॐ तन छीनै है कहे दूबर है जाइहै सो घन बरसै है कहे सुधा बरसे हैं याते बनो रहे है। पुहुमी का पानी जब अंबरमें भरन लँगैहै कहे नीचे को वीर्य ब्रह्मांड में चढ़ावन लहै तब शीशे की सराई बनाइकै लिंगद्वार में डारै है पानी बैंचैहै जवा राह साफ है जाइदै तब पवनके साथ वीर्य चैहै तव पवन वीर्यके साथ जीवात्मा चढ़ि जाई त्रिकुटी में त्रिबेणीको स्नान करिकै दशै अनहद सुनन लाग्यो तामें मंदिर कहे मृदंगौ हैं सो वाजै हैं औं घटते कहे बङ्कनालकी राहते जब जीवात्मा जाइहै तव अम्बर जो है गैबगुफाको आकाश सो भीजै है अर्थात् उहां वीर्य पहुंचि जाईहै सो यह आश्चर्य का कीनै ॥ ४ ॥ कहै वीर सुनौ हो संतो योगिन सिद्धि पियारी। | सदा रहे सुख संयम अपने बसुधा आदि कुंवारी ॥६॥ सो कबाली हैं हैं कि हे संतौ ! यहि तरहकी जो सिद्धिहै सो योगिनको पियारिहै सो प्रथमते सिद्धिही नहीं होइहै जो घुनाक्षर न्याय ते सदा सुख संयम में रहै औ सिद्ध भई समाधि लगी ताते फेरि वैसेही योगी भये अथवा पुडुमीपति भये योग करिकै हम यह शरीरके मालिक द्वैगये मनादिक हमारे बश द्वैगये परंतु जब यह शरीर छूट जाईहै और शरीर होइहै तब वह सुधि सच भूलि जाइहै अरु जब पुहुमीपति भयो आपनेको राजा मानि लियो सो जब मरगयो तब पुहुमी नहीं की है जाइहै पृथ्वी कुमारिही रहि जाइहै ॥ ५ ॥ इति बयासीवां शब्द समाप्त । अथ तिरासीवां शब्द ॥ ८३ ॥ | भूला वे अहमक नादाना । तुम हरदम रामाहं ना जाना १ वरवस आनिकै गाय पछारा गला काटि जिउ आप लिया। | जीता जिव सुरदा करि डारै तिसको कहत हलाल किया २