________________
चौंतीसी । (४२९) पयकअंतरवासा । अंतरज्योतिकीनपरक्सा ॥ औ जकार वेगवारेको औं जवनको कहै हैं ‘वेगनि जैः समाख्यातो जघने जः प्रकीर्तितः ॥ ९ ॥ झझा अरुझि सरुझ कित जानाहीठत ढूंढ़त जाहि पराना। कोटि सुमेरु ढूंढ़ि फिार आवै।जोगढ़ गढ़ा गढ़हि सोपावै १० | झ कहिये झंझापवनको, औ झा कहिये नष्टको सो तें विषयझंझामें परिकै नष्ट होइगये । सो यामें अरुझकै हैं कहां सरुझिकै जैहै । ॐ कहिये पीठिको झा कहिये विषयवयारिकोसो विषयबयारमें अरुझकै साहबको पीठिकै सरुझिकै कितजान चाहें है । हिठत ढूंढत तेरो परान जाइहै । नाना उपासना नानामतकरै है । अथवा हठित ढूंढत तेरोपनि जाइहै नानामतनमें, पै तोको विषय बयारि न छाँडैगी वाहीमें अरुझो रहैगो । कोटिसुमेरुकहे कोटिन ब्रह्माण्ड भटकि आवो परन्तु जौन मन शरीरगढ़के गढ़ाहै कहे बनावा तौनेनको औगढ़कहे शरीरको तपावैगो याते तें बिषयबयारको छांडु साहबके सम्मुख होइ । झ झंझावातको औ नष्टको कहै हैं तामेप्रमाण ॥ “झंझावाते झकारःस्यान्नष्टे झस्समुदाहृतः ॥१०॥ अना निरखत नगर सनेहू । आपन करु निरुवारु सदेहू ॥ नहिंदेखोनहिआपुभजाऊोजहां नहींतहँतनमनलाऊ॥११॥ म कहिये सोइबेको आ कहिये झर्झर ध्वनिको । सो झर्झरनाक बजावत ऐसो सोवत कहे आपने स्वरूपको भूलो जीव नाना मतनमें बाद विवाद करते नगर जो जगत् औ शरीर ताहीको निरखै है औ वाहीमें सनेह करै है आपने जो संदेहकी मैं साहबकोहौं कि और को हौं ताको तो निरवारुकरु नयबातते नहीं देखी जहमें साहब मिले हैं औ न आप भनाऊ कहे न अपनप जाने कि मैं कौनकाह जिन जिन मतनमें न साहिबै जानिपरै नं आपने स्वरूप जानिपरै तामें तें तनमनको लगाये है । औ अशयनको औ झर्झरध्वनिकोकहै हैं। तामॅप्रमाण ।। "अकरः शयने प्रोक्तो अकारो झर्झरध्वनौ ॥ ११ १-ज' वेगवाले और जाँघ को कहते हैं । २-झ' आँधी और खोजानेको हकते हैं । ३-'अ' सौने ( शयनकरने ) औ झझर शब्दमें कहाजाता है।