पृष्ठ:बीजक.djvu/६२१

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साखी। (५८३) जीव ताको हनै है सो जब जीव मारे परयो तब मनसा जो है मनोरथ सोई सचानभयो है कहे शार्दूल भयो सो उड़ि उड़ि याको खायहै अर्थात् जब मरनलॉगै है तब जैहैं मनोरथ जायदै तहैं जीव जायदै सोई खायबो है औ यन्त्र मन्त्र जों नाना उपदेश वेदशास्त्र कहै है सो नहीं मानै है ॥ १४२ ॥ । मन गयंद मानै नहीं, चलै सुरतिके साथ ॥ दीन महावत क्या करें, अंकुश नाहीं हाथ ॥ १४३ ॥ मनरूपी जो मतंगहै सो नहीं मानै है सुरतिरूपी जो हाथिनी है ताके साथ चलै है महाउत जो है जीव सो कहाकैरै अंकुश जो नामका ज्ञान सो याकेहांथई नहीं है ॥ १४३ ॥ यो माया है चूहरी, औ चूहरकी जोइ । वाप पूत अरुझायके, संग न काहुकी होइ ॥ १४४ ॥ या माया चूहरी कहे चाण्डालनी है औ चूहरैकी जोइहै कहे जीवकी जोई बैंकै जीवहूको घूहर बनायलियो अर्थात् आपने वश कैलियो सो यह माया काहूकी सँगनहीं है । मन जो है बाप, पूत जो है ब्रह्म ताको पतिजो है जीव तासों अरुझाय दियो है ॥ १४४ ॥ कनक कामिनी देखिकै, तू मत भूल सुरंग ॥ बिछुरन मिलन दुहेलरा, केचुलि तजै भुजंग ॥१४५॥ साहब है हैं कि कनक कामिनीरूप मायाको देखि तू मतिभुलाय हैं तो सुरङ्गहै साहब कहै हैं कि मेरे अनुरागमें रंगनवारो है सो आपने स्वरूप तो बिचारु यह कनक कामिनीरूप जो मायाहै तौने में जो ग्योहै ताको जो छोडिदे तौ जैसे भुजंग केचुल छोड़ि देइहै तब वाको स्वरूप निकार आवै है तैसे तेरे । चारो शरीर छूट जायँ तब हंसशरीरपाय मेरे पास अवै ॥ १४५ ॥ मायके वश सब परे, ब्रह्मा विष्णु महेश ।। नारद शारद सनक औ, गौरी सुत्त गन्नेश॥ १४६॥ अर्थ याको स्पष्टही है ॥ १४६ ॥