पृष्ठ:बीजक.djvu/६७९

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साखी । (६४३) भुलासो भूला वहुरिक चेतु ॥ शब्दकी छुरी संशयको रेतु ॥३३१॥ | गुरुमुख । साहब कहै हैं कि हे जीव ! तें भूला सो भूला भला यह संसार ते बहार कहे उलटिकै तौ चेत करौ सारशब्द जो रामनाम छूरी तेहितें अपनी संशय रेत डारु कहे काटिडारु अर्थात रामनामको अर्थ तो बिचारु तँ मेरोई है और पदार्थ छोड़िदे तामेप्रमाण ॥“यक रामनाम जाने बिना भव बूडिमुवा संसार' ॥३३१॥ सबही तरुतर जायकै, सवफल लीन्हो चीखि ॥ फिरिफिर माँगत कबिरहै, दर्शनहींकी भीखि ॥३३२॥ सबही तरुतर जायकै कहे शरीर धारण कारकै सुख दुःखरूप फल सब चाख्यो नाना उपासना योगज्ञान बैराग्य सब कैचुक्ये शरीरधरेको फल कोई न पायो सो शरीर धरे को फल साहब को दर्शन है सो फिर फिर कबीर मांगै है ॥ ३३२ ॥ श्रोता तो घरही नहीं, बक्ता वर्दै सो वाद ॥ श्रोता बक्ता एकघर, तब कथनीको स्वाद ॥ ३३३॥ श्रोताते घरहीमें नहीं है अर्थात् सुनते नहीं है औवक्ता आपनो मत बादिबादिइँदै है ओताको समुझावै है सो जब श्रोतावक्ता एक घरहोइ कहेएकै उपासनाहाइ एकै मतहोय तब कथनीको स्वाद है कहे कथाको स्वादत. बहीं मिले है जैसे याज्ञवल्क्य भरद्वाज इत्यादिक तामें प्रमाण ॥ “इष्ट मिले अरु मन मिलै, मिलै भजन रस रीति । तुलसिदास सोई संतसों, हठ कार कीने मीति'१॥ दूसरो प्रमाण राम सखेजीको।“शिष्य सांच गुरु सांचहै,झूठन नियत न मान॥बध्यो शिष्य साची प्रकृति, छोरत गुरुदै ज्ञान॥२॥औ कबीरहूजीको प्रमाण । साखी चौरासी अंगकी। “नाम सत्य गुरु सत्यहै,आप सत्य जब होइ । तीन सत्य प्रकटें जबै, गुरुका अमृत होइ' ॥ ३३३ ॥