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पृष्ठ:बीजक.djvu/७५५

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बघेलवेतवर्णन। महाराज रघुराज निकट पखंडी कोटि कुटिलऊ सटपटै थिति उसलति है ॥ कवि नटखटनकी कूर बहुकटढनकी चुगुल चवाइनकी दाल ना गलतिहै ॥ ३ ॥ सुमति गणेश लेसै साहिबीमें त्यों सुरेश धनमें धनेश शत्रु नाशनमहेशहैं ॥ तेजमें दिनेश मुजनन प्रजेश प्रजापालनमें वेश सम राजत रमेशहैं ॥ गावत नरेश दौह निजहिं निवेश सभा सुयश विशेष नासु छाजै देश देशहै ॥ भन युगलेश रघुराजसे सुमतधारी सुत बांधवेश औ परेस सेवा पेसहै ॥ ४ ॥ करयुग जोरि कमलापति कमलाजी कहै युगलेश बार बार कहैं वैन कल ॥ रावरो भगत विश्वनाथ तनै रघुराज जन्यो तन्यो जासु यश चारु स्वच्छभल ॥ असित पदारथ ते सित द्वैगये हैं सबै परत पिछानि नाहिं जाय जहांजौने थल ॥ वसिय निरंतर की ताहि ऐके अंतरकी उदधिको अंतर न छोडि जैये छोनी तल ५ भागवत पढ्यो भागवत को विश्वास मान्यो जननि सुभद्रा श्रीसुभद्रारूप जानिये रामभक्त परमअनन्य महा भागवत विश्वनाथसिंह जासु जनक बखानिये ॥ भागवतदास नाम तिनहीं सों पायो भयो भागवत रूप कंठ भागवत गानिये ॥ भागवत सेवी रघुराजसिंह भागवत जाके उर भौंन भगवंत भौन मानिये ॥ ६॥ सवैया-याचक वृंद मलिंदनको गण पाय सुपास अनंदितहीमें॥ आय मनोरथ पूरणकै यश गान करें चहुँ ओर महीमें॥ भाषत कवि देशनि जाय नरेशनके दरवारनहीमें ॥ दान करके कपोलनमें कीहरी रघुराजके हाथनहींमें७ दोहा-महाराज रानी सबै, गौरी सम महिमाथ ॥ लौं पतिव्रत धर्मरत, तऊँ न कबहूँ साथ ॥ ८२ ॥ महाराज रघुराजके, अमित चरित्र अनूप ॥ युगलदास वरण्यो कछुक, निजमातके अनुरूप ॥ ८३॥ जामें सूचित चरित सब, ऐसो अष्टक वेश ॥ विरचत युगलेश यह, सुखप्रद सुकवि विशेष ॥८४॥