पृष्ठ:बीजक.djvu/७६०

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(७३०) बघेलवंशवर्णन । जोलौं दीनबंधु दृग देखो दाया दाह दास तोलौं युगलश विनय मेरि यश साखिये। राज्यश्रीअखंड सुखयुत संयुत सुधर्मसाज भूप रघुराज महाराज आप राखिये॥३॥ सोरठा-ग्रंथ भयो जब पूर, उचित मंगलाचरणपर ॥ | श्रीहरि गुरु सुख पूर, चरण कमल वंदन करू॥ ५४॥ | कवित्त । निरत जासु नाम हरिदास हरिरूप सीय राम सेव हीमें जिन्हें जात रैन दिन ॥ कोहू सों न कहै देखि संत निज आश्रमै सादर करत सत्कार आयो छिन छिन॥ कहैं युगलेश मान रजोगुणि वाहननि चढे नहिं कबों या स्वभाव रह्यो सब दिन॥ कहाँ हरिरूप पर हरिते सरसरूप लिये है अनूप श्री है येतो रहै तेहि विन॥१॥ दोहा-धरयो सर्प यक को विछी, यक को दुःखित कीन्ह ॥ हरिचरणामृत पाय तह,दुत निर्विष कीरदीन्ह ॥ ८८॥ ऐसे चारित अनेक हैं, को कह आनन एक ॥ नेक कृपा लहि नाथ मैं, वरण्यों है सविवेक ॥ ८९ ॥ जो करताहै ग्रंथको, सोउ वरणै निज वंश ॥ युगलदास याते करत, कछ निज मुख परशंस ॥२९॥ कवित्त । देश गुजरात ते नरेश संग आये यहां पुस्तिबहु तिन्हैं कहां लौं गिनाइये ॥ चैनसिंह भे दिवान अति मतिमान खास कलम सुवंश राय तिनको सुनाइये ॥ लल्लू खास कलम कहाये नाम मंशाराम भूपति अजीत बहु मान्यो सो जनाइये। कायत प्रसिद्ध साधु सुमति अगाध तासु वंश गिरिधारी लाल नाम जासु गाइये १ दोहा-महाराज विश्वनाथ तेहि, मान्यो करि अति प्यार ॥ सोय खास कलमहि कियो,लखि तिहि बुद्धि अपार९१ भोदूलाल दिवान सुजाना । रहेते अस मन किये अमाना ॥ यह संकोच पुरुषते भारी । करौ न हमरौ हुकुम सुखारी ॥