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पृष्ठ:बीजक.djvu/८८

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मैनी । | (३७) स्वाग हिंदू मुसल्मान भये ७ सो कबीरजी कहेहैं कि जैसे हम शुद्धहैं तैसे तुमहूं शुद्ध हेहौ । जब तुमहीं मन प्रकट किया है औ इच्छा भई है तब हम तुम एकही लोहू रहे हैं अर्थात् एकई जाति चित्त स्वरूप शुद्ध रहे हैं । सो एक मोह कहे भ्रम जो है मन सो व्याप्त बैंकै नाना भांतिन तुमको कराइ दियो कि हम हिंदू हैं हम तुरुक हैं इत्यादिक सबस ॥ ८ ॥ एकैजनी जनासंसारा । कौनज्ञानते भयोनिनारा ॥ ९ ॥ भावालकभगद्वारेआया। भगभोगेतेपुरुषकहाया ॥ १० ॥ अविगतिकीगतिकाहुनजानी। एकजीभकेतकहौंबखानी११ | एक जनी कहै उत्पात्त करनहारी माया औ एकै जना कहे उत्पत्ति करनहार मनका अनुभव ब्रह्ममाया सबलित इनहीं ते सब जगह है तुम कौन ज्ञानते हिंदू तुरुक नाना जाति बनाय लिये निनार निनार ९ जब भगके द्वारे आया तब बालक कहाया औ जब भोगन लग्यो तब पुरुष कहाया १० अविगति जो है धोखा ब्रह्म ताकी गति कोई नहीं जानै है मैं एक जीभते केतो बखानिकै कहीं ॥ ११ ॥ जोमुखहोइजीभदशलाषा । तौकोइआयमहंतौभाषा॥१२॥ | जो एक मुखमें लाख जीभ हाय तौ कोई कहे महन्त वही ब्रह्मको भाषे अर्थात् न भाषै यह याकुअर्थ है काहेते कि वाके तौ कुछ रूप रेखा हई नहीं है धोखही है अथवा महंत जे ब्रह्मादिक अपने २ लोकके मालिक जिन जगतकी उत्पत्ति किया है तिनके करतव्यताको जो काहूके दशलाख जीभ होय कहै तौ का कहिसकै अर्थात् नहीं कहिसकै ॥ १२ ॥ साखी ॥ कहाहिंकवीर पुकारिके, ई लयऊ ब्यवहार ॥ | रामनाम जानेबिना; भव बूड़ि मुवा संसा॥१३॥ कबीरजी पुकारिकै कहैहैं कि या जो उत्पत्ति वर्णन करिआये सो सब लय कहे नाशमानहै । औ ऊ कहे वह धोखा ब्रह्मको जो वर्णन कर आये सो व्यवहा