पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१५४

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-BALI

  • वीजक मूल * . १५५

फिर पाछे जनि हेरहु हो रमैया राम ॥ कालबूत सब श्राहि हो रमैया राम ।। कहहिं कबीर सुनो संतो हो रमैया राम ॥ मन बुद्धि ढिग फैलाव हो रमैया राम ॥ विरहुली। विरहुली ॥१॥ आदि अंत नहिं होत बिरहुली ॥ नहिं जर पल्लव डार विरहुली ॥ निशि वासर नहिं होते बिरहुली ॥ पौन पानी नहिं मूल बिरहुली ॥ ब्रह्मादिक सनकादि बिरहुली ॥ कथि गये योग अपार चिरहुली ।। मास असाढ़े शीतल बिरहुली ॥ बोइनि सातो बीज विरहली॥ नित गौड़े नित सींचे विरहुली ॥ . नित नव पल्लव ·डार विरहुली ॥