पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१९७

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.१६८ वीजक मूल कहहिंकवीर अस्मानहिफाटा ! क्योंकरसीवेदी, 1 ई जग जरत देखिया अपनी अपनी ऐसा कोई न मिला । जासो रहिये ल ५९ बन बनाया -मानवा । विना बुद्धि वैतूल कहा लाल ले कीजिये । विना वासका फूल ॥३३. सांच बरावर तप नहीं । झूठ बराबर पाप . जाके हृदया सांच है । ताके हृदया आप ॥३३॥ कारे बड़े कुल ऊपजे । जोरे बड़ी बुद्धि नाहि ।।। जेसा फूल उजारिका । मिथ्या लगि झरजाहिं ३३५ । कर्ते किया न विधि किया। रविशशी परी न दृष्टि । तीन लोक में न नहीं । जाने सकलो सृष्टि ३३६ सुरहुर पेड अगाध फल | पंछी मरियो झूर ॥ वहुत जतनके खोजिया । फल मीठा पे दूर ॥३३७॥ बैग रहे सो वानिया । ठाढ़ रहे सो ग्वाल ! जागत रहे सो पहरुवा । तेहिधरिसायो काल ३३८ । आगे आगे दी जरे । पाछे हरियर होय ॥ ' चलिहारी तेहि वृक्षको।ई सल २३६ AM