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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/२००

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  • वीजक मूल * १६६

जन्म मरण वालापन । चौथेवृद्ध अवस्था प्राय ।। जसमूसाको तके विलाई असयमजीवघातलगाय३४० है बिगरायल वोरका । विगरो नाहिं विगारो ॥ घावकाहिपर घालो । जितदेखों तितप्राण हमारे३४१ पारस परसे कंचन भौ । पारस कधी न होय ॥ पारस के अरस परसते । सुर्वण कहावे सोय ३४२ ॥ ढंढत ढूँढत इढिया । भया सो गुना गून ॥ ढूँढन ढूँढन ना मिलो । तवहारी कहा वेचून ३४३ । वेचून जग चूनिया । साई नूर निन्यार ॥ आखिर ताके बखत में । किसका करो दीदार ३४४ सोई नूर दिल पाक है । सोई नूर पहिचान ॥ जाफे किए जग हुवा । सों वेचून क्यों जान ३४५ ब्रह्मा पूछे जननि से । करजोरि शीस नवाय॥ कौनवर्ण वह पुरुष है । माताकहु समुझाय ३४६ ॥ रेप रूप वै है नहीं । अधर धरी नहिं देहु ॥ गगन मंडल के मध्य में । निरखो पुरुष विदेह ३४ घरे ध्यान गगनके माहिं । लाये वन किवॉर ॥