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PARAMATKARINAKAMAAAAAAHEART बीजक मूल * कहहिं कवीर केहि देहो खोरी । जव चलि हो कि मिासा तोरी॥ रमैनी ॥१॥ देव चरित्र सुनहु हो भाई । जो ब्रह्मा सोई धियेउ नसाई ॥ दूजे कहों मंदोदरि तारा । जेहि घर जेठ सदा लगवारा ॥ सुरपति जाय अहिल्यहि छरी। सुर गुरु घरणी चंद्रमै हरी ॥ कहहिं कबीर हरिके । गुण गाया । कुन्ती कर्ण कुँवारेहि जाया ॥ रमैनी ॥ ८२॥ सुख के वृक्ष एक जगत उपाया । समुझि न . परलि विषय कछु माया ॥ छौ क्षत्रीपत्री युगचारी ! फल दुइ पाप पुण्य अधिकारी ॥ स्वाद अनंत कछु । ' वर्णि न जाई । करि चरित्र सो ताहि समाई ॥ जो + नटवर साज साजिया साजी । जो खेले सो देखे ॥ वाजी ॥ मोहा वापुरा युक्ति न देखा । शिव शक्ती विरंचि नहिं पेखा ॥ 1 Ila