से उठकर बोधिवृक्ष के पूर्वोत्तर कोण में १४ धनु पर जिसे अभि- निमेप स्थान लिखा है, जाकर वोधि वृक्ष की ओर मुँह करके एक सप्ताह तक अनिमेष होकर बैठे रहे । तीसरे सप्ताह में अभिनिमेष स्थान से पाँच धनु बोधि वृक्ष की ओर चलकर पूर्व से उत्तर और उत्तर से पूर्व को एक सप्ताह तक चंक्रमण करते रहे । चौथे दिन वे चंक्रमण से रत्नागृह वा रंलाघर को गए। यह स्थान बोधि द्रुम से उत्तर पश्चिम में १० धनुं पर है । यहाँ. महात्मा बुद्धदेव ने प्राचीन बुद्धों के उपदेश क्रम पर विचार किया । ललितविस्तर का मत है कि चौथे सप्ताह में वे रत्लाघर से चलकर अजपाल अश्वत्थ के नीचे गए। यह अजपाल अश्वस्थ महाबोधि वृक्ष से पूर्व दिशा में ३२ धनु पर है। यहीं महात्मा बुद्धदेव ने बोधि-प्राप्ति के लिये बोधिद्रुम के नीचे आने के पूर्व वैशाखपूर्णिमा के प्रातःकाल के समय सुजाता के हाथ से भिक्षा ली थी । कहते हैं कि यहाँ पर फिर मार की पुत्रियों ने आकर उन्हें डिगाने का प्रयत्न आरंभ तपासने स्यात् इंदमयानुचरा सम्यक्ष संबोधिरभिसंधुद्धा प्रहमंयाऽनवर:- ग्रांझ जातिजरामरणादुःखस्यान्तः कृति इति । द्वितोये सप्ताई यांगतों दीर्घक्रमणं चंक्रमवेस्म। निसाहसमहांसाहत्त्रलोक पातुमुपगृह्म । तीये सप्ताहे तथागतोउनिमिप योधिमंडमीक्षतेस्म । इहाउमवाउनुत्तरा सम्यक संबो-. चिरमिसंयुद्धा अनवरायाझ जरामरणाहु-खस्यांतः, कृतः । इति २४ अध्याय । बौद्ध ग्रंथों में टहलने को चंक्रमण कहते हैं। ललितविस्तर का मत है मारने घौथे सप्ताह में जवे वे दोपचक्रमण कर रहे थे, भाकर विघ्नं करना प्रारंभ किया और अपनी कन्याओं रति, अरवि, और तृष्णा को भेजा, और जब वे उन्हें वश नहीं कर सकी तब वे मार के पास जाफर बोलीं---
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