. (. १५) उरुवेला .. आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः सन्यो निदिध्यासितव्यः । ऋपिपतन में पहला चातुर्मास्य समाप्त कर महात्मा गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को चारों दिशाओं में उपदेश करने के लिये भेजकर काशी से उरुवेला की ओर चले । मार्ग में एक जंगल पड़ता था जिसका नाम कापास्य वन था। इस जंगल में भद्रवर्गीय कुमार जिनकी संख्या तीस थी, विहार करने आए थे। इन कुमारों में उन-- तीस राजकुमारों का तो व्याह हो गया था और वे लोग सपत्नीक विहार के लिये वहाँ पधारे थे, पर उनमें से एक अविवाहित था और उसके लिये एक वेश्या को बुलवाया गया था। तीसौं भद्रीय कुमार उसी वन में डेरा डाले अपनी अपनी स्त्रियों के साथ विहार कर रहे थे। एक दिन सब लोग मद्य पीकर रात के समय उन्मत्त हो गए और अचेत होकर सो गएं । वेश्या ने ऐसे समय जो कुछ उसके हाथ लगा, लेकर वहाँ से रास्ता लिया। प्रातःकाल जब सब लोगों का नशा उतरा तो उन्हें मालूम हुआ कि वेश्या बहुत कुछ माल असवाव लेकर चली गई। सब लोग यह देख बड़े व्याकुल हुए और एक साथ उस वेश्या को ढूंढने लगे। वे लोग वन में उस वेश्या को इधर उधर ढूंढ रहे थे कि अचा- नक उन्हें सामने गौतम बुद्ध एक पेड़ के नीचे बैठे हुएदिखाई पड़े। सब लोग महात्मा बुद्ध के पास गए और उनसे पूछने लगे कि- " भगवन् ! आपने किसी स्त्री को जाते देखा है ? " भगवान् बुद्ध-
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