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बुद्धदेव (१) प्रस्तावना शकवायुवरुणादयः सुराः विक्रियां मुनिवरांश्च यत्कृते। यांति तस्मरसुखं तृणायते ___ यस्य कस्य न स विस्मयास्पदम् ॥ वैदिक आर्यों की प्राचीन सभ्यता, जिसे ऋषियों ने वैदिक काल के प्रारंभ में स्थापित किया था और जिसका मूलमंत्र "हतेह हमा मित्रस्य चक्षुपा सर्वाणि भूतानि समीक्षताम्। मित्रस्याहं सर्वारिण भूतानि समीक्षे। मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे " था, अनार्य जाति के सम्पर्क से, दूषित हो गई थी। उनकी वह स्वतंत्रता, जिससे प्रेरित होकर महर्षि विश्वामित्र ने समस्त कुशिक जाति को अपने अपने घरों में आग जलाने की * आज्ञा दी थी, प्राचीन अग्नि-.
- देखो ऋग्वेद में० ३ ० २८ मं० १५
धमित्रायुधो मस्तामियप्रपाः प्रथमंजा ग्रहयो विश्वनिविदुः । ट्युमद्ब्रह्मफुथिकास एरिर एक एके दमे अग्नि नीधिरे।