पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पियों को बुलाकर उसके अभिषेक के लिये दिन निश्चित किया । अभिषेक का सामान होने लगा और सत्र सामग्री एकत्र की गई । शुभ मुहूर्त आने पर अनेक ब्राह्मणों और विद्वानों को भोजन कराया गया । इस उपलक्ष में भगवान् बुद्धदेव को भी ससंघ निमंत्रण दिया गया । अभी अभिषेक का मुहूर्त नहीं आया था कि भगवान बुद्धदेव जो अपने संघ समंत राजगृह में भोजन कर रहे थे, अपने स्थान से उठे और नंद के हाथ में जो उनके पास ही खड़ा था, अपना भिक्षापात्र देकर अपने संघ समेत न्यग्रोधाराम को सिधारे। नंद भी उनका भिक्षापात्र लिए उनके साथ ही साथ न्यग्रोधाराम को चल पड़ा ! उब नंद चलने के लिये राजमहल से निकला, तब उसकी स्त्री ने उसे भगवान बुद्धद्रेव के साथ पीछे पीछे जाते देख पुकारकर कोठे पर से कहा-"आर्यपुत्र ! शीघ्र लौटना 1" इसका उत्तर नंद ने भी " अच्छा" कहकर दिया । कौन जानता था कि क्या होनेवाला है। किसे अनुमान था कि नंद कुमार जिसका अभी थोड़ी देर में यौवराज पद पर अभिषेक होनेवाला है, न्यग्रोधाराम में जाकर अभी सिर मुंडाकर भगवा वस्त्र धारण कर लेगा । अस्तु । . जब नंद कुमार भगवान बुद्धदेव के पीछे उनके संघ के साथ न्यग्रोधाराम में पहुँचा, तब भगवान् वहाँ वैठ गए और उनके संघ के लोग उनके चारों ओर घेरा बाँधकर बैठे । नंद कुमार ने भिक्षा- पात्र उनके सामने रख दिया और विनीत भाव से वह उनके सामने खड़ा हो गया। भगवान् बुद्धदेव नंद कुमार को अभिमुख करके बोले- नंदकुमार ! क्या तुम ब्रह्मचर्य नहीं पालन कर सकते ?"