पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१५८

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(. १४५ ) करता हूँ तुम भी वाम मार्ग ग्रहण करो। अब यहाँ हमारे पारस्परिक संबंध का अंत होता है।" भद्रकापिलानी पति की बात सुनकर रोने लगी और बोली-" प्राणनाथ ! आप क्या कह रहे हैं ? पर मैं आप की दासी हूँ। आपकी आज्ञा का पालन करना ही मेरे लिये श्रेयस्कर है । अस्तु, जो आज्ञा ।" यह कहकर उसने पिप्पल की प्रदक्षिणा कर वाम दिशा का मार्ग ग्रहण किया और पिप्पल दक्षिण के मार्ग से आगे बढ़ा। उस मार्ग से पिप्पल बहुत दूर नहीं गया था कि मार्ग में पीपल के एक पेड़ के नीचे उसे भगवान बुद्धदेव अपने कुछ भिक्षुओं के साथ बैठे हुए मिले । पिप्पल भी जाकर अश्वत्य के नीचे भगवान् के पास बैठ गया और उनके उपदेश सुनने लगा। भगवान ने उसे धर्म, शील दान, संतोष, ब्रह्मचर्य आदि का उपदेश दिया जिसका प्रभाव उस पर इतना पड़ा कि उसने उसी समय भगवान की शरण लेकर प्रव्रज्या ग्रहण की और वह संतोष में एतदन हुआ । यही महाकाश्यप सूत्रपिटक का प्राचार्या हुआ।