पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१७६

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त्रिविध भेदों से पृथक कर सकती है ? संज्ञारहित और प्रज्ञारहित पुरुष को शांति नहीं मिलती। संज्ञा और दृष्टि को जिसने वशीभूत कर लिया है, वही पुरुष संसार में न लिप्त होकर घदी यंत्र की तरह निर्मनस्क फिरता है और कर्म करता हुआ भी उनमें लिप्त नहीं होता।" इस प्रकार मागंधिय ब्राह्मण को उपदेश कर भगवान् बुद्धदेव वहाँ से आगे बढ़े । दैवयोग से इस घटना के थोड़े ही दिन बाद, कौशांबी महाराज उदयन उस गाँव में आए और मागंधी का रूप- लावण्य देख उसे व्याहकर वे कौशांबी पुरी को सिधारे। भगवान बुद्धदेव देशाटन से वसंत ऋतु में फिर श्रावस्ती गए और उनके पहुंचने के बाद ही कुक्कुट,गोशित और पावरिक अपनी भेंट की सामग्री लिये श्रावस्ती में पहुंचे और भगवान् बुद्धदेव के पास उन साधुओं के साथ जिनसे उन्हें समाचार मिला था, जाकर उनका उपदेश श्रवण किया। कई दिन रहकर उन्होंने भगवान से कौशांबी में नवम चातुर्मास्य करने के लिये प्रार्थना की । भगवान ने उनका निमंत्रण स्वीकर किया और वे लोग उन्हें प्रणाम कर कौशांबी को सिधारे। . .... - वर्षा ऋतु के आगमन के समीप भगवान बुद्धदेव अपने पाँच सौ शिष्यों सहित कौशांबी पधारे और उन्होंने कुक्कुटाराममें निवास किया । वहाँ एक मास तक वे उन तीनों श्रेष्ठों के अतिथि रहे, फिर नगरवासियों के यहाँ भिक्षा करने लगे। महाराज उदयन की तीन रानियाँ थीं-चासवदत्ता, श्यामावती