(२७ ) तेरहवाँ चातुमास्य चातुर्मास्य की समाप्ति पर भगवान बुद्धदेव वेरंजर ग्राम से चलकर अपने संघ समेत गजगृइ आए और वहाँ संघ को छोड़ अकेले गया चले गए। एक दिन वे गया में एक यक्ष के घर में जाकर बैठे। थोड़ी देर में उस घर के स्वामी शूचीलोम और खरलोम नामक दो यक्ष जो कहीं गए थे, आए । उन दोनों को अपने द्वार पर एक मितु बैठा हुआ देख षड़ा क्रोध हुआ । खर ने शूचीलोम से कहा "भाई, तुम जाओ और देखो यह कौन पुरुष है ।" शूचीलोम घर पर आया और भगवान बुद्धदेव के पास उनसे सटकर बैठा और बोला "श्रमण ! मैं तुमसे कुछ प्रश्न करूँगा । यदि तुमने उत्तर दिया तो ठीक है, अन्यथा मैं तुम्हारी टाँग पकड़कर गंगा पार फेंक दूंगा और तुम्हारा हृदय फाड़ डालूंगा।" उसकी यह बात सुन भगवान् बुद्धदेव ने कहा-"मेरी टाँग पकड़कर फेंकने और मेरा हृदय फाड़ने के लिये कहना तो तुम्हारा साहस मात्र है। संसार में आज तक मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जो मेरी टाँग पकड़कर फेंकने या मेरा हृदय फाड़ने का साहस करे । पर तुम प्रश्न करो; मैं उत्तर दूगा।" यक्ष ने पूछा-
- हे गौतम ! राग और दोप कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? अरति,
- रागो पदोसो प फुवोनिदाना
भारती रती लोमहसी कुवोला । फुवासहाय मनोवितको कुमारका धंफमियोस्सति ।