पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/२२६

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( २१३ ) सुशील पाँच प्रकार की क्षति और लाभ प्राप्त करते हैं । दुःशील पुरुप जीवित अवस्था में बोर दरिद्रता को प्राप्त होता है, उसकी चारों ओर बदनामी होती है, मनुष्यों के समाज में वह सदा डरता हुआ जाता है, मरने के समय भी उसके चिच की उद्विग्नता दूर नहीं होती और अंत को शरीर त्याग कर वह नरक में पड़ता है। सुशील पुरुष की दशा इसके विपरीत है। वह जीवित अवस्था में महासुख भोगता है, उसका सुयश चारों ओर फैल जाता है, वह मनुष्य समाज में प्रसन्न चित्त से जाता है, मरते समय उसके चित्त में किसी प्रकार की उद्विग्नता नहीं रहती और शरीर त्याग कर वह खन लोक को प्राप्त होता है।" ___ यहाँ से वे सुनिधि और वर्षकार के स्थान पर, जहाँ वे ठहर कर. दुर्ग बनवा रहे थे, गए । वहाँ भगवान् बुद्धदेव कई दिन उन दोनों राजमंत्रियों के यहाँ रहे । वहाँभगवान बुद्धदेव ने कहा-"यह पाट- लिग्राम, पाटलिपुत्र कहलावेगा। इस को समृद्धि, सभ्यता और वाणिज्य बढ़ेगा और यह नगर सव सेनष्ठ नगर होगा; पर अंत को अग्नि, जल और गृह-विच्छेद से इस नगर का नाश होगा।" • वहाँ से भगवान बुद्धदेव ने आनंद के साथ गंगा नदी को पार किया और वे कोटिग्राम गए । वहाँउन्होंने मित्रों को चारों आर्य सत्यों की शिक्षा दी और कहा कि जब तक मनुष्य इनके तव को नहीं समझता, तब तक वह जन्म-मरण के भय से नहीं बच सकता, और इनके सम्यक् ज्ञान से ही भवतृष्णा को निचि और पुनर्जन्म का उच्छेद हो जाता है।