सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/२३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २२४ ) अशाश्वत् नाशमान हैं । बुद्धवा ज्ञानी पुरुषों को किसी बात की इच्छा. 'नहीं होती। ____ इस प्रकार संसार का महान शिक्षक इक्यासी वर्ष इस संसार • में रहकर अपनी अंतिम अवस्था में अपने अंतिम शिष्य को अपने अंतिम दिन के अंतिम पहर में अंतिम धर्म का उपदेश करता हुआ अचल समाधि में जिसमें ज्ञाता और ज्ञेय का भेद नहीं रहता,अपने अचल स्वरूप में स्थित हुआ । उसका अंतिम वाक्य यह था- "संयोगा विप्रयोगान्तः" "संयोग का वियोग ध्रुव है ।" महात्मा बुद्धदेव के परिनर्वाण प्राप्त करने पर भिक्षु संघ की सम्मति से आनंद कुशीनगर में गया और उसने मल्लराज को भगवान के परिनिर्वाण का समाचार सुनाया। मल्लराज अन्य मल्लवंशी क्षत्रियों समेत बड़े समारोह से महात्मा बुद्धदेव के परिनिर्वाण स्थान पर आए और गंध श्रादि से उनके शरीर को अलंकृत कर कपड़े में लपेटकर तेल को-नाव में उसे रख दिया। चारों ओर भिक्षसंघ को महात्मा बुद्धदेव के परिनिर्वाण की सूचना दी गई । सातवें दिन उनकी अंत्येष्टि क्रिया के लिये चंदन आदि सुगंधित काष्ठों की चिता बनाई गई और भगवान् बुद्धदेव का शव नाव से निकालकर सुगंधित द्रव्यों के साथ चिता पर रखा गया। सब लोग उसके चारों ओर विनीत भाव से खड़े हुए और चिता में आग देना ही चाहते थे कि महाकाश्यप पाँच सौ भिक्षुओं को साथ लिए उस स्थान पर पहुँचा । महाकाश्यप ने तीन बार चिता की प्रदक्षिणा की और महात्मा बुद्धदेव की पाद-वंदना