उनसे पूछने लगे कि "आप लोग कौन हैं और यहाँ कैसे आए हैं ?" 'ब्रह्मचारियों ने उत्तर दिया कि हम शाक्य-राजकुमारी अमृता और राजर्षि कोलि के पुत्र हैं और अपने पिता माता के आज्ञानुसार यहाँ निवास करने के लिये आए हैं। उनके आने की सूचना लोगों ने कपिलवस्तु के महाराज को दी और राजा ने सहर्ष उन ब्रह्मचारियों का स्वागत किया । उन ब्रह्म- चारियों का कपिलवस्तु में समावर्तन संस्कार किया गया और शाक्यवंशी कन्याओं से विवाह कर उन्हें राज्य में रहने को जगह दी गई। ये लोग रोहणी नदी की पूर्व दिशा में कोलि ग्राम वसाकर रहने लगे। इन लोगों के वंशधर कोलिय कह- लाने लगे और इन लोगों का शाक्यों से परस्पर विवाह-संबंध होता रहा। बहुत दिनों बाद देवदह के कोलि राजवंश में सुप्रभूत नामक राजा उत्पन्न हुआ। इसके सुप्रबुद्ध और दंडपाणि नामक दो पुत्र और माया, महाप्रजावती * आदि पाँच कन्याएँ थीं। उस समय कपिलवस्तु में शाक्यवंशी महाराज सिंहहनु । राज्य करते थे।
- इन्हीं दोनों को महामाया और महामनावतो भी कहते हैं। ।
+ महापंश में उल्कामुख से सिंहानु तक निम्नलिखित राजाशों के नाम मिलते है---निपुर, इंदोमुख, संजय, वेश्मंता, चामि और सिंहवाहन। सिंह- वाहन से ८२००० पीढ़ी याद महाराज जयसेन दुर जिनको महावंश ने सिंहहनु का पिता लिखा है । अवदानकल्पलता का मत है कि विरुद्धक से २५००० पीढ़ी वाद दशरथ हुए जिनके वंश में सिंहहनु उत्पन्न हुए। महा- वस्तु में उल्कामुख और सिंहहनु के बीच केवल इस्तिथीर्ष का नाम पाया है।