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पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/७५

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' (८) प्रवज्या उदयति यदि भानुः पश्चिमेदिग्विभागे प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वह्निः। विकसति यदि पद्य पर्वताप्रे शिलायां · · न भवति पुनरुक्तं भापितं सज्जनानाम् ॥ आधी रात का समय है। सब लोग निद्रा-देवो के वशीभूत पड़े सुख की नींद सो रहे हैं। सिद्धार्थ कुमार अपने घोड़े कंठक पर सवार हो कपिलवस्तुं से निकल पूर्व ओर चले जा रहे हैं और उनका विश्वासपात्र दास छंदक उनके घोड़े के पीछे पीछे चुपचाप छाया की भाँति लगा चला जाता है। वे घने जंगलों और सुनसान मैदानों में होते हुए अनेक छोटी छोटी पहाड़ी नदियों और नालों, को पार करते रोहिणी के तट पर पहुंचे। उन्होंने रोहिणी को पार किया और वे कौड़िया (कोलिय) राज्य में पहुंचे। कौड़िया राज्य में ही उनकी ससुराल थी, इसलिये वे वहाँ भी न रुके और दिन किसी न किसी तरह कहीं बिताकर वे पावा * के मल्लों के राज्य में पहुँचे। पर यहाँ भी उन्होंने दम मारना अनुचित समझा । यहाँ से वे मैनेय राज्य में गए और कई दिन और रात चलकर वे कपिलवस्तु से छः योजन पर अनामा नदी के किनारे पहुंचे। उन्होंने अनामा नदी को पार किया और वे अपने घोड़े पर से उतर पड़े। यहां उन्होंने अपने शरीर से ,सारे वस्त्रा-

  • पावा को भय पड़रौना कहते हैं। वह गोरखपुर जिले में है