पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/८२

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( ६९ ) विषय-भोग का सेवन कर उनसे तृप्ति चाहे तो वह समुद्र के जल से प्यास बुझाने को चेष्टा करता है। ज्यों ज्यों वह विषय-भोग में रत होगा, त्यों त्यों उसकी तृष्णा बढ़ती जायगी। अतः हे महाराज ! विषय-भोग से तृप्ति की आशा रखना व्यर्थ है। इससे दृप्ति हो ही नहीं सकती। हाँ, जो पुरुष आर्या, आंभवरहित और धर्मनिष्ठ प्राज्ञ है, उसी को सच्ची तृप्ति प्राप्त है । महाराज ! आप अपने शरीर की ओर ध्यानपूर्वक देखिए, यह क्षणभंगुर और दुःख का एक यंत्र मात्र है । इसके नवों द्वारों से मल, मूत्र, श्लेष्मा आदि सदा बहा करते हैं । मुझे तो कामभोग में कोई सुख नहीं दिखाई देता।मेरे घर खयं अनेक विपुल ऐश्वर्या, सुंदर दर्शनीय स्त्रियाँ तथा अन्य आमोद प्रमोद की सब सामग्रियाँ संपन्न थी; परंतु अब मैं उन सब को छोड़ परमकल्याणकारी उत्तम निर्वाण पद लाभ करने के लिये घर से निकला हूँ। फिर मैं आपके इस राज्य और ऐश्वर्या को ले कर क्या करूँगा ?" गौतम की इन बातों को सुन विवसार अत्यंत विस्मित हो अपने मन में लज्जित से हो गए। वे सोचने लगे कि यह कौन पुरुष है जिसने इस प्रकार अपने ऐश्वर्या को त्याग निर्वाण की जिज्ञासा के लिये संन्यास ग्रहण किया है। विंवसार ने कुतूहलवश गौतम से फिर पूछा-'हे भिक्षो ! आप कौन हैं ? आपकी जन्मभूमि कहाँ है ? आपका नाम क्या है ? आपके पिता माता का क्या नाम है ?" विंबसार के प्रश्नों को सुन गौतम ने नम्रता से उत्तर दिया-"महा- राज, आपने सुना होगा कि शाक्यों का कपिलवस्तु नामक एक राज्य