पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२४४

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कहँ बारबधू मिलि गान करैं,
बरसाय प्रसून प्रमोद भरैं;

पथ फूलन सोँ यहि भाँति भरै
जहँ पावँ कुमार-तुरंग धरै
धँसि टाप न तासु लखाय परैं;
मिलि लोग सबै जयनाद करैं।

यहि भाँति नरेशनिदेश भयो,
सब के हिय माहिँ उछाह छयो।
दिन ऊगत नित्य सबै अकनैं
कहुँ आगम दुंदुभि बाजि भनैं।

धाय मिलन हित पियहि प्रथम धरि चाह अपार
गइ यशोधरा शिविका पै चढ़ि पुर के द्वार।
जाके चहुँ दिशि लसत रम्य न्यग्रोधाराम,
जहँ सोहत बहु विटप बेलि वीरुध अभिराम।
झूमति दोऊ ओर फूल फल सोँ झुकि डार;
हरियाली बिच घूमि घूमि पथ कढ़े सुढार।
राजमार्ग चलि गयो धरे सोइ उपवन-छोर।
परति अंत्यजन की बस्ती है दूजी ओर,
पुर-बाहर जे बसत बेचारे सब बिधि दीन,
छुअत जिन्हैं द्विज नाहिँ मानि कै अतिशय हीन।