पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२५०

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पर्यो प्राण तन, लै उसास लक्ष्मी बोली तब-
"सत्य तिहारो प्रेम, त्याग लखि परयो मोहि अब।'
मुक्ता जो वा पूर्व जन्म में मैंने पाई,
भले काज में मैंने दीनी ताहि लगाई।
एक जीव के सुख हित दीनी सो छन माहीं
देखी काहू भाँति और रक्षा जब नाहीं।

औरहु गहरे धंसि अथाह में पाय बोधिबल
लह्यों अंत में अति अलभ्य जो यह मुक्ताफल,
सत्य धर्म 'द्वादश निदान' मय रत्न अनोखो,
छीजि सकत नहिं, होत दिए सोँ औरहु चोखो।
गुनौ मेरु के आगे ज्यों वल्मीक पुरानो,
जैसे वारिधि आगे तुम गोपदजल जानो
तैसोई सो दान दान के आगे या मम
जासोँ मंगल होय जीव को छूटै सब भ्रम।
ऐसोई यह प्रेम आज को बड़ो हमारो
इंद्रिन के श्रमबंधन सोँ ह्वै सब विधि न्यारो;
नयो सहारो देन हेतु जो जीवहि निर्बल
है महत्त्व यह याको; नहिं कछु संशय को थल।
यशोधरा योँ पाय प्रेम को मृदुल सहारो
बढ़ी शांति-सुख-मार्ग ओर संशय तजि सारो।