पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२६०

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जे बँधे सारे जीव नाना रूप देहन संग-
वृक, बाघ, मर्कट, भालु, जंबुक, श्वान, मृग सारंग,
बहु रत्नमंडित मोर, मोतीचूर-नयन कपोत,
सित कंक, कारे काग आमिष भोज जिनको होत,

अति प्लवनपटु मंडूक, गिरगिट, गोह, चित्र भुजंग,
झष चपल उछरत झलकि जो छलकाय सलिलतरंग,
सब जोरि नातो मनुज सोँ, जो शुद्ध तिन सम नाहिँ,
सब कटन बंधन चहत गुनि यह मुदित हैँ मन माहिँ।

नृप को सुनाय सब धर्मसार
उपदेश कियो प्रभु या प्रकार-


उों अमितायु!

अप्रमेय को न शब्द बाँधि कै बताइए,
जो अथाह ताहि योँ न बुद्धि सोँ थहाइए।
ताहि पूछि औ बताय लोग भूल ही करैँ;
सो प्रसंग लाय व्यर्थ वाद माहिँ ते परैं।

अंधकार आदि में रह्यो पुराण योँ कहै,
वा महानिशा अखंड बीच ब्रह्म ही रहै।