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पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२९२

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परम शांति सोँ बोलि देत उत्तर जो माँगत
'परिनिर्वाण' पुनीत लह्यो भगवान तथागत।
मनुजन में रहि मनुज सरिस, शुभ मार्ग दिखाई
परम शून्यमय नित्य शांति में गए समाई।


चरित भयो यह पूर्ण; कह्यो मैं जो कछु गाई
सो यह साहस मात्र भक्तिवश जानौ, भाई!
जानत थोरी बात वाहु पै कहन न जानत,
यातें अपनी चूक आपही मैं अनुमानत।
कहाँ तथागत चरित, कहाँ लघु मति यह मेरी!
चाहौं यातें क्षमा, दया मैं प्रभु की हेरी।

बुद्धं शरणं गच्छामि
धर्मं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि।
इति