पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/३१

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7 , इसी प्रकार कविता में कभी कभी वर्तमान की अगाड़ी खोल कर धातु का नंगा रूप भी रग्व दिया जाता है- (क) सुनत बचन कह पवन कुमारा। -तुलसी (ख) उत्तर दिसि सरजू बह पायनि । -तुलसी उच्चारण-दो से अधिक वर्गों के शब्द कं आदि में 'इ' के उपरांत 'या' के उच्चारण से कुछ द्रूप त्रज और बड़ी दानों पछाही बोलियों का है। इससे अवधी में जहा एसा योग पड़ता है वहाँ ब्रज में संधि हो जाती है। जैसे, अवधी के सियार, कियारी, बियारी, बियाज, बियाह, पियार ( कामिहि नारि पियारि जिमि-तुलसी), नियाव, इत्यादि ब्रजभाषा में स्यार, क्यारी, ब्यारी, ब्याज, व्याह, प्यारा, न्याव इत्यादि बोले जायेंगे। 'उ' के उपरांत भी 'आ' का उच्चारण ब्रज को प्रिय नहीं है; जैसे, पूरबी-दुबार, कुवार, । वन-द्वार, कारा । इ और उ के स्थान पर य और व की इसी प्रवृत्ति के अनुसार अवधी इहा उहाँ (१.इहा कहाँ मजन कर बासा । २. उहाँ दसानन सचिव हँकारे । —तुलसी ) के बजरूप 'यहाँ' 'वहाँ' और 'हियॉ' 'हुवाँ' के 'ह्याँ' 'हाँ' होते हैं। ऐसे ही 'अ' और 'आ' के उपरांत भी 'इ' नापसंद है, 'य' पसंद है-जैसे, अवधी के पूर्वकालिक आइ, जाइ, पाइ, कराह, दिखाइ इत्यादि और भविष्यत् आइहै, जाइहै, पाइहै, कराइहै, दिखाइहै (अथवा अइहै, जइहै, पइहै, करइहै, दिखइहै) आदि न कह कर ब्रज में क्रमश: आय, जाय, पाय, दिखाय तथा प्रायहै, . 7 .