पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/४५

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(ख) भूषि भूषण शत्रुदृषण छाँड़ियो तिहि काल्न । (=छोड़ा) (ग) बन मॉझ टंर सुनी कहूँ कुश प्राइयो अकुलाय। (= आया) (घ) तब और बालक आनि । मग रोकियो नजि कानि। (=रोका) 'हो' धातु का भूतकाल ग्वड़ी बाली में था' होता है पर व्रज में 'हुतो', 'हतो' या 'हो' होता है। ब्रज की चलती बोलचाल में 'हुतो' और 'हुते' का 'हो' और 'हे' प्राय: हो जाता है, (क) बिनु पावस तो इन्हें थ्यावम हो न. सु क्यों करि यं अब सो परसैं ?-घनानंद । (ख) एक दिवस मेरे घर आए मैं ही महति दही । -सूर (ग) तब तो छवि पीवत जीवत हे अब मोचन लाचन जात जर ।-घनानंद । (घ) तब हार पहार से लागत हे अब आय के बीच पहार परं।-वनानंद। इस 'हतो' का प्रयोग बुंदेलखंड में अधिक है। काल- ज्ञापन के अर्थ जहाँ यह किसी क्रिया के साथ संयुक्त होता है वहाँ प्रायः 'ह' निकल जाता है केवल 'तो' रह जाता है। यह शुद्ध बुंदेलखंडी है- (क) छोड़ोइ चाहत ते तब तें तन ।