के रूप लवंत हैं इससे 'आपन', 'हमार', 'तुम्हार' आदि ।
स्त्री रूपों में भी (आपनि, हमारि, तुम्हारि) 'इ'कार उतना
स्पष्ट नहीं रहता । 'कर' केवल पच्छिमी अवधी में है और
इसमें लिंगभेद साफ़ है । इसी का बैसवाड़ो रूप 'क्यार' है-
जैसे, "मनियादेड महोबे क्यार । 'कर' का बज रूप यद्यपि
'केरो' है पर खास ब्रजमंडल के भीतर यह अब सुनने में नहीं
आता । प्राकृत में भी यह संबंधचिह्न अपने पूरे लिंगभेद के
साथ मिलता है-पुं० केरओ, स्त्री० केरिपा, न० केरअं या
केरउँ । पुं० केरा, केरु; स्त्री० केरी; न० करं। 'केरओ'
आदि रूप पुराने हैं, उ०-एसोक्खु अलंकारओ अजाए केरो
(मृच्छ०)= यह अलंकार आर्या का है। पिछले पुं० रूप
'केरो' और 'केरु' हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि दीर्घात
रूप 'केरों' ब्रज और लवंत रूप 'केरुअवधी है । यह 'कर'
या 'करो' सं० 'कृत' से निकला हुआ माना गया है।
व्यक्तिवाचक के अतिरिक्त और सर्वनामों के रूप अवधी में इस
प्रकार हैं। यह = यह (पच्छिमी अवधी ),ई (पूरबी), (बहु०
ये-ए)। वह = वह (पच्छिमी अवधी),ऊ (पूरबी); 'सो' (पच्छिमी
अवधी), से, तीन, ते (पूरबी), (बहु० वै, ते-वै, ते) । जो=
जो (पच्छिमी अवधी); जे, जौन (पूरबी अवधी); (बहु० जो-
ज)। कौन = को (पच्छिमी अवधी); के, कौन (पूरबी अवधी;
(बहु० को-के)। इनमें से पूरबी 'जौन', 'तीन', और 'कौन' जड़
पदार्थों के लिए अथवा व्यक्ति के संबंध में लघुत्व सूचित करने के
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