र्याप्त प्रतीत हुए वहाँ बहुत कुछ फेरफार करना या बढ़ाना भी पड़ा हैं। अँगरेज़ी अलंकार जो हिन्दी में आनेवाले नहीं थे वे खोल दिए गए हैं; जैसे मूल में यह वाक्य था-
..................Where the Teacher spake Wisdom and power,
इसमें Hendiadys नामक अलंकार था जिसमें किसी संज्ञा का गुणवाचक शब्द उसके आगे एक संयोजक शब्द डालकर संज्ञा बना कर रख दिया जाता है-जैसे,ज्ञान और ओज = ओजःपूर्ण ज्ञान । उक्त वाक्य हिंदी में इस प्रकार किया गया है-"ओजपूर्ण अपूर्व भाख्यो ज्ञान श्रीभगवान् ।" तात्पर्य यह कि मूल के भावों का भी पूरा ध्यान रखा गया है। शब्द बौद्ध शास्त्रों में व्यवहत रखे गए हैं। उनकी व्याख्या भी फुटनोट में कर दी गई है। कुछ चित्र भी दिए गए हैं जो काशी के कुशल चित्रकार श्रीयुत केदारनाथ द्वारा अंकित हैं। यदि काव्य-परंपरा के प्रेमियों का कुछ भी मनोरंजन होगा तो मैं अपना श्रम सफल समझूँगा।
जिस वाणी में कई करोड़ हिंदीभाषी रामकृष्ण के मधुर चरित का स्मरण करते आ रहे हैं उसी वाणी में भगवान् बुद्ध को स्मरण कराने का यह लघु प्रयत्न है। यद्यपि यह वाणी ब्रजभाषा के नाम से प्रसिद्ध है पर वास्तव में अपने संस्कृत रूप में यह सारे उत्तरापथ की काव्यभाषा रही है और है।
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