पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/९६

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"बेगि लाओ ताहि" बाल्यो कुँवर तब हरपाय।
लोग लाए जाय सो प्राचीन धनुष उठाय,
वज्र-निर्मित, कनकवेलिन-खचित, अति गुरुभार।
चापि घुटनन पै लिया बल आँकि तासु कुमार।

कह्यो पुनि "लै याहि बेधौ लक्ष्य तो टुक जाय"।
पै सक्यो लै ताहि कोऊ नकु नाहिँ नवाय।
कुँवर उठि तव सहज झुकि कोदंड दिया लचाय,
डोर की लै फाँस दीनी कोटि वीच चढ़ाय,

शिंजिनी पुनि बचि कानी अति कठिन टंकार।
भयो कंपित पवन, पूर्यो घोर रव पुर पार।
हहरि निर्बल लोग छयो "शब्द यह किहि ओर?"
कह्यो सब "यह सिहहनु के धनुष को रव घोर

है चढ़ायो जाहि अबही भूप को सुत धीर;
जात है अब लक्ष्य बेधन; लगी है अति भीर"।
साधि शर संधानि छाँड्यो जबै राजकुमार
पवन चीरत चल्यो, कीनो भेदि लक्ष्यहि पार।

थम्यो नहि शर गयो सनसन बढ़त आगे दूर
दृष्टि काहू की नहीं पहुँची जहाँ भरपूर।

नागदत्त पुनि खड्ग चलावन की ठहराई।
तालद्रुम दस आँगुर मोटो दियो गिराई।