पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बुद्ध और बौद्ध-धर्म ११२ कपिशा-साम्राज्य के अन्तर्गत लगभग एक सौ बिहार थे। और उनमें ६००० बौद्ध भिक्षु रहते थे। अब उनके सिर्फध्वंसावशेष रह गये हैं। हाँ,एक स्तंभ अभीतक खड़ा है। न भूकम्प और न मूर्ति- भंजकों के कुल्हाड़ों की उस पर मार पड़ी है। हुएनसांग ने कोई १००० बौद्ध साधु,१० बिहार देखेथे और एक बुद्ध की १००फुट ऊँची मूर्ति देखी थी। वह मूर्ति अब भी वामियान में है, और वहाँ के निवासी उसे अजहा कहते हैं। उनका विश्वास है कि किसी मुसलमान फकीर ने उस अजदहेको माराथा, उसी की यह स्मृति है। हिद्दा में जो बुद्ध के शरीर का कुछ अंश रक्खा हुआ और जिसे सैंकड़ों देशों के यात्री दर्शन करने आते हैं। इस जगह जो मूर्तियाँ मिली हैं, वह ऐसी हैं कि उनकी कारीगरी की बराबरी करनेवाली कोई चीजें ही नहीं मिलती हैं। हिद्दा में जो स्तूप फ्रांस के विद्वानों ने खोज करके निकाला है, उसे वहाँ के निवासी पास्ता का स्तूप कहते हैं। पास्ता का अर्थ विशाल है, और इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह स्तूप बहुत ही विशाल है। जब चीनी यात्री फाहियान हिदा गया था, तब भी यह अभ्रंकश था। यह सुना जाता है कि-जब यह स्तूप बनाया गया था, उस समय इसके विषय में यों कहा गया था कि यदि पृथ्वी फट जाय, सैंकड़ों भूकम्प आजायँ, पर यह स्तूप अपने स्थान से किंचितमात्र भी नहीं हटेगा । हिदा में बहुत से स्तूप थे, जिनमें बुद्ध के दाँत-डाढ़ें और मस्तक की हड्डियाँ रक्खी हुई थीं।