१३६ बौद्ध-काल का सामाजिक जीवन , अहित, तीर्थंकर या युद्ध का जन्म तो क्षत्रिय जैसी महान् जाति में ही हुआ है और होगा। जातक ग्रन्थों में और भी अनेक जातियों का वर्णन मिलता है । जातक कथाओं के पढ़ने से मालूम होता है कि उस समय अछूत भी थे और उनके साथ बुरा व्यवहार भी किया जाता था । एक जातक ग्रन्थ में लिखा है कि एक बार ब्राह्मण और वैश्यों की दो त्रियाँ नगर के फाटक से बाहर निकल रही थीं तो रास्ते में उनको दो चाण्डाल मिले । वे उनके दीखने को अपशकुन मान घर को लौट गई । इसके बाद लोगों ने उन चाण्डालों को चुरी तरह पीटा और उनकी खूब दुर्गति बनाई। मातङ्ग जातक और सद्धम जातक को देखने से भी यह पता चलता है कि उस समय अछूतों के साथ बड़ा बुरा बर्ताव किया जाता था। इसलिये बुद्धने ज्यों ही अछूत और नीच जातियों को अपने मत में लिया और उनको बड़े-बड़े जिम्मेदार तथा सम्मान के पदों पर नियुक्त किया तो सब जनता युद्ध के पीछे हो गई। इस समय भी जाति विरोध तथा कट्टरता थी किन्तु एक दूसरी जाति के अन्दर विवाह हो जाता था । और इस तरह के विवाहों में जो सन्तान होती थी वह अपने पिता के पक्ष में गिनी जाती थी। परन्तु लोग दूसरे वर्षों की अपेक्षा अपने वर्ण में ही विवाह करना अधिक पसन्द करते थे। इस समय लोग इतर जाति के और इतर वर्षों के भी काम करते थे। ब्राह्मण खेती करते थे। खाती, माली तथा दर्जी आदि का भी काम करते थे। क्षत्रिय लोग भी
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