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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१४८

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बौद्ध-धर्म में स्त्रियों का स्थान , वुद्ध भगवान् ने यद्यपि स्त्रियों को अपने संघ में स्थान दिया था और पुरुषों की भांति खियाँ भी भिक्षुणियाँ बन सकती थीं। परन्तु वास्तव में बौद्ध-सम्प्रदाय का मूल-तत्व स्त्रियों को पुरुपों से दूर रहने में ही था क्योंकि बौद्ध-धर्म में त्याग और वैराग्य का स्थान मुख्य है, भोग का नहीं । बुद्ध ने स्त्रियों की निन्दा तो नहीं की, परन्तु बराबर यह सलाह दी है कि लोग स्त्रियों के खतरे से बचे रहें और जहाँतक सम्भव हो, स्त्रियों से दूर रहें। उनके खयाल में आदर्श जीवन वह है कि त्रियों से अलग रहकर और सम्भव हो तो किसी भी दशा में उनसे न मिलकर अपना जीवन व्यतीत किया जाय । वियों के सम्बन्ध में एक बार बुद्ध ने अपने प्रमुख शिष्य आनन्द से कहा था। आनन्द ने प्रश्न किया-"भगवन् ! स्त्रियों के विषय में कैसा व्यवहार करें ?" बुद्ध ने कहा-"उन्हें देखो मत आनन्द।" आनन्द ने कहा-"परन्तु यदि उन्हें देखना.पड़े तब?" बुद्ध-"बहुत सावधान रहो आनन्द ।"