पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

युद्ध और बौद्ध-धर्म १६. आवश्यक है कि मैं ई को स्थान नहीं दूंगा, और न दूसरों की निन्दा करूँगा । यह मेरे लिए यहाँ फलदायक होगा, यथार्थ में यह दूसरे जन्म में और भी लाभदायक होगा। सूचना ४- देवताओं का प्रिय राजा पियदसी इस प्रकार बोला-अपन राज्याभिषेक के २६ वें वर्ष में मैंने यह सूचना खुदवाई है। मैंने लाखों निवासियों के लिए रज्जुकों को नियत किया है। मैंने रज्जुकों को दण्ड देने का अधिकार अपने हाथ में रक्खा है, जिस में वे पूरी दृढ़ता और रक्षा के साथ अपना कार्य करें, और मेरे राज्य के लोगों की भलाई और उन्नति करें । वे उन्नति और दुःख दोनों की बराबर जाँच करते रहते हैं, और धर्मयुतों के साथ वे मेरे राज्य के लोगों को शिक्षा देते हैं, जिनसे लोग सुख और भवि- प्यत् में मुक्ति प्राप्त कर सकें। रज्जुक लोग मेरी आज्ञा-पालन करते हैं, पुरुप लोग भी मेरी इच्छा और आज्ञाओं का पालन करते हैं, और मेरे उपदेशों का प्रचार करते हैं, जिसमें रज्जुक लोग संतोप- जनक कार्य करें। जिस भाँति कोई मनुष्य अपने बच्चे को किसी सचेत दाई को देकर निश्चित रहता है, और सोचता है कि मेरा बच्चा सचेत दाई के पास है, उसी भाँति मैंने भी अपनी प्रजा के हित के लिये रज्जुक लोगों को नियत किया है। और जिसमें वे हृढ़ता और रक्षा के साथ विना किसी चिन्ता के अपना कार्य करें, मैंने उनको अभियुक्त करने और दण्ड देने का अधिकार स्वयं अपने .