बुद्ध और बौद्ध-धर्म २२६ पहनता है, और अपने कानों और उँगलियों में सोने के आभूपण डाल लेता है, (यह स्नातक का चिह्न है। आज से २३०० वर्ष पहले सामान्यतः ३७ वर्ष का ब्रह्मचर्य होता था), तभी वह ( अर्थात् गृहस्थ ) मांस खाता है, परन्तु उन पशुओं का नहीं, जो भार उठाते हैं। वह जितनी स्त्रियों से चाहता है, विवाह करता है। उस के यहाँ दास तो होते ही नहीं, इसलिए ये काम-धन्धे के लिए बहुत से लड़के-बाले चाहते हैं।" "ब्राह्मण लोग अपना ज्ञान अपनी त्रियों को नहीं सिखलाते। उनको यह डर रहता है कि यदि स्त्रियाँ दुराचारिणी हो गयीं, तो अनधिकारियों को विद्या बतला देंगी। दूसरा डर यह है कि यदि स्वयं अच्छी दार्शनिक हो गयीं, तो कदाचित् अपने पतियों को त्याग दें, क्योंकि जो जीवन और मृत्यु, सुख और दुःख को समान दृष्टि से देखने लगता है, वह दूसरे के अधीन नहीं रह सकता। ये लोग बहुधा मृत्यु के विषय पर विचार करते हैं। वह इस जीवन को उस समय से तुलना देते हैं, जब बच्चा गर्भ में रहकर तैयार होता है। वे समझते हैं, ज्ञानियों के लिए मृत्यु सच्चे और सुखमय जीवन का द्वार है । इसलिए ये लोग मृत्यु के लिए प्रस्तुत होने के लिए बड़े-बड़े संयम करते हैं। इनका सिद्धान्त है कि मनुष्य पर जो कुछ बीतता है, वह न शुभ है न अशुभ । शुभाशुभ एक मिथ्या भ्रम है, नहीं तो वही वस्तु एक को सुखी और दूसरे को दुखी कैसे बनाती, और एक ही मनुष्य को कभी सुखी, कभी दुखी कैसे करती?
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