बुद्ध और बौद्ध-धर्म वहाँ से भागा, और उसने काश्मीर को विजय कर लिया। उसी के वंश में प्रसिद्ध कनिष्ठ राजा हुआ, जो ईसा के उपरान्त प्रथम शताब्दी में कश्मीर की गद्दी पर था। इस विजयी राजा ने अपना राज्य काबुल और यारकन्द से लेकर आगरे और गुजरात तक फैलाया। अशोक के बाद यही ऐसा प्रतापी राजा था। हुएनत्सॉग लिखता है कि चीन के राजा इसके पास मनुष्यों को गिरवी रखते थे। यह कट्टर बौद्ध था। उसने उत्तरी बौद्धों की एक बड़ी सभा की थी, तथा बौद्ध-धर्म प्रचार को दूत भेजे थे। शक सम्बत इसी से चला है। कनिष्क के बाद कश्मीर फिर खण्ड-खण्ड हो गया, और छोटा-सा राज्य रह गया। राज-तरंगीनी नामक प्रसिद्ध संस्कृत इतिहास में जो कल्हण न १२ शताब्दी में बनाया था इस बड़े राजा के समय का हाल इस प्रकार लिखा है- कल्हण के मत में महाभारत-युद्ध से कनिष्क के उत्तराधिकारी अभिमन्यु के समय तक १२६६ वर्ष में ५२ राजा हुए । इससे महाभारत का समय ईसा से १२ सौ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है। कनिष्कके वंशज बिल्कुल हिन्दु नाम और बौद्ध-धर्म ग्रहण कर चुके थे। कनिष्क की ३१ वी पीढ़ी में मारगुप्त गद्दी पर था, जो उज्जैन के प्रतापी विक्रमादित्य का समकालीन था, विक्रमादित्य ने ही मारगुप्त की सहायता की थी।
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