पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२२७

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बुद्ध और बौद्धधर्म २४० लोग अच्छी अवस्था में हैं, उन्हें राज्य-कर नहीं देना पड़ता । न उन्हें राज्य की तरफ से कोई रोक-टोक है। केवल जो लोग राजा की भूमि को जोतते हैं उन्हें अपनी उपज का कुछ अंश राज्य को देना पड़ता है। वे जहाँ जाना चाहें जा सकते हैं और जहाँ रहना चाहें रह सकते हैं । अपराधियों को शारीरिक दण्ड नहीं दिया जाता, परन्तु उनकी दशा के अनुसार जुर्माना किया जाता है। अगर कोई कई वार राज-द्रोह करे तो उसका दाहिना हाथ काट लिया जाता है। राजा के शरीर-रक्षक जो उसके दाहिनी और बाई ओर उसकी रक्षा करते हैं, नियत वेतन पाते हैं। सारे देश में कंवल चाण्डालों को छोड़कर और कोई लहसुन या प्याज नहीं खाता, न जीव-हिंसा करता है और न कोई मदिरा ही पीता है। यहाँ के लोग सूअर या चिड़िया नहीं रखते और पशु का व्यापार नहीं करते। बाजार में मदिरा की दुकानें नहीं हैं । वेचने-खरीदन में लोग कौड़ियों को काम में लाते हैं। केवल चाण्डाल लोग हत्या करके मांस बेचते हैं। बुद्ध के निर्वाण से लेकर आज तक यहाँ के राजा लोग बिहार, मठ आदि बनवाते आये हैं और उनके खर्च के लिए खेत, मकान, वगीचे, गाय-बैल, नौकर आदि के दानपत्र खुदवाये जाते थे और एक के उपरान्त दूसरे राजा के राज्य में वे स्थिर रहते थे। उन्हें छीनने का किसी ने उद्योग नहीं किया । अतएव उनमें अबतक कोई बाधा नहीं आई है । इनमें रहनेवाले सब भिन्तुओं को विछौने, चटाई, भोजन, पानी और कपड़े आदि अपरिमित रूप से दिये जाते हैं। यही बात सब जगह है।"