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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२३०

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२४३ दो अमर चीनी बौद्ध भिक्षु दिन दूर-दूर से अनेकों सन्यासी और गृहस्थ इकट्ठहोते हैं और जब वह धूप और फूल चढ़ाते हैं तो बाजा बजता है और खेल होते हैं। तब ब्रह्मचारी पूजा करते हैं । फिर बौद्ध लोग एक-एक करके नगर में प्रवेश करते हैं। नगर में आने पर वह फिर ठहरते हैं और रात-भर रोशनी, गाना-वजाना, खेल-कूद, पूजा आदि होती रहती है। ईसा की पाँचवीं शताब्दि में बौद्ध-धर्म ने बिगड़कर जो मूर्ति- पूजा का रूप धारण किया था, उसका यह जीता-जागता आँखों देखा अमूल्य वृत्तान्त है। इससे भी अधिक मनोरंजक वृत्तान्त फाहियान ने पाटलिपुत्र के धर्मार्थ चिकित्सालयों का लिखा है। वह लिखता है- "इस देश के अमीर गृहस्थों ने नगर में चिकित्सालय बनवाये हैं, जहाँ हर देश के लूले-लंगड़े या अन्य रोगग्रस्त रोगी रह सकते हैं। वहाँ वह हर प्रकार की सहायता पाते हैं । चिकित्सक उनके रोगों की परीक्षा करता है और रोग के अनुसार उनके खाने-पीने, दवाई, काढ़े और अन्य सुख की सामग्रियों के लिए आज्ञा दे देता है। आरोग्य होने पर वह अपनी इच्छानुसारं चले जाते हैं। ‘फाहियान ने राजगृह के उस मठ के विषय में, जो कि बुद्ध की मृत्यु के उपरान्त पवित्र पाठों को संगृहीत करने के लिये बनवाया गया था,लिखा है-'पर्वत के उत्तरी ओर एक चेति नाम की पत्थर की गुफा है । यहीं बुद्ध के निर्वाण के बाद पवित्र पुस्तकों को संग्रहीत करने के लिये ५०० अर्हत एकत्रित हुए थे। -