बुद्ध और बौद्ध-धर्म .२६८ 1 और हुएनत्संग दोनों ने स्वयं इस मठ को नहीं देखा, पर दोनों ने इसका वर्णन किया है। वे लिखत हैं-"इस चट्टान में एक गड्ढा करवाया और उसमें एक सकाराम बनवाया । लगभग दो मील की दूरी पर उन्होंने सुरंग खुदवाकर एक ढका हुआ मार्ग खोला । इस प्रकार इस चट्टान के बीच खड़े रहने से बिल्कुल कटी हुँई चट्टानों और लम्बे बरामदों के बीच, जिनमें नीचे चलने के लिए गुफाएँ और ऊपर चढ़ने के लिय गुम्बज बने हैं; खण्डदार इमारत को देख सकते हैं, जो कि पाँच खण्ड ऊँची है। प्रत्येक खएड में चार दालान तथा घिरे हुए बिहार हैं। एक दफा इस सङ्घाराम के पुजारी परस्पर लड़ पड़े और इसके निबटारे के लिए राजा के पास पहुँचे । ब्राह्मणों ने इसे अच्छा अवसर देखकर संघाराम को बरवाद कर दिया और उस स्थान की गठबन्दी कर दी। फिर हुएनत्संग आन्ध्रों के प्राचीन देश में आया, जिन्होंने ईसा के कई शताब्दियों पहले दक्षिण भारत में अपने राज्य और सभ्यता की उन्नति की थी और मगध तथा समस्त भारत पर शासन किया था। सातवीं शताब्दि में उसकी प्रधानता उज्जयनों और गुप्तों के हाथ में चली गई थी। अब इनका राज्य केवल ६०० मील के घेरे में था, जहाँ २० संघाराम और २० मन्दिर थे। इस देश के दक्षिण में 'धनकटक' अर्थात् आन्धों का बड़ा देश था, जिसका घेरा १२०० मील का था। इसकी राजधानी ८ मील के घेरे में थी, जिसे कि आजकल वैजवाड़ा कहते हैं। भूमि उपजाऊ और फसल बहुत थी, परन्तु इस देश का बहुत-सा भाग
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