पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बुद्ध और बौद्ध-धर्म २७४ उससे उसका तात्पर्य-सव राज्य से है । पर ऐसे गाँवःया भूमि को छोड़कर जो किसी मनुष्य या मठ को सदा के लिए दे दी गई हो, अथवा जो राज कर्मचारियों के लिए नियत हो । शान्ति और युद्ध में राज्य का तथा राजा के घर का व्यय राजा.की सम्पत्ति तथा कर की आय से किया जाता था । :. लोगों के चाल व्यवहार के विषय में हुएनत्संग उनके सीधेपन तथा सचाई की आदरणीय साक्षी देता है। वह लिखता है.-. "वे लोग स्वभावतः गम्भीर; सच्चे और आदरणीय हैं। हर किस्म के व्यवहार में वे निष्कपट और न्याय करने में गम्भीर हैं, वे लोग दूसरे जन्म में प्रतिफल पान से डरते हैं और इस संसार की वस्तुओं को तुच्छ समझते हैं। वे धोखेबाज़ अथवा कपटी नहीं हैं और अपनी शपथ अथवा प्रतिज्ञा के सच्चे हैं।" यही सच्ची सम्सति मेगस्थिनीज़ के समय से लेकर अब तक के विचारवान् यात्रियों की रही है, जिन्होंने हिन्दुओं को उनके घरों और गाँवों में देखा है और जो उनके नित्य :कर्मों और प्रति दिन के व्यवहारों में सम्मिलित हुए हैं। उन आधुनिक अंग्रेजों में जो भारतवर्ष के लोगों में हिल-मिलकर रहे हैं, ऐसे ही एक निरीक्षक कर्नल स्लीमेन साहब हैं। कर्नल साहब-कहते हैं- गाँव में रहने वाले स्वभावतः अपनी पंचायतों में बढ़ता.से.सत्य का साथ देते हैं। मेरे सामने सैकड़ों ऐसे अंभियोग हुए हैं जिनमें मनुष्य की स्वाधीनता, सम्पत्ति और प्राण उसके झूठ बोल देने पर निर्भर रहे हैं, परन्तु उसने झूठ बोलना स्वीकार नहीं किया !" .