पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२६७

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नालन्दा विश्वविद्यालय उदय, अस्त और पुनर्दर्शन गुप्तकाल भारतवर्ष का वर्ण-युग कहा जाता है। नालन्दा विश्व-विद्यालय का पूर्ण विकास उसी युग में हुआ था। तर में लगातार सात सौ वर्ष तक क्रमशः गुन, वर्धन और पालवंशांक राजाओं के संरक्षण में यह विश्वविद्यालय ज्ञान का केन्द्र बना रहा। यहीं से ज्ञान की वह ललकार उठी थी-वह 'शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः' की उत्साहवर्धक पुकार । इस विश्वविद्यालय के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप का अनुमान हम इसी बात से कर सकते हैं कि चीन, तिब्बत, तुर्किस्तान, सिंहल आदि सुदूर देशों के विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने के लिए यहाँ आते थे। इसके इतिहास में भारतवर्ष का लगभग सात सौ वर्षों का इतिहास छिपा हुआ है। आज भी संसार के विरले ही विश्वविद्यालय इतने दीर्घकालीन जीवन का दावा कर सकते हैं। यह सब केवल यहाँ के तेजस्वी भिक्षुओं के आत्म-त्याग का प्रभाव था। विक्रमकी तेरहवीं शताव्दि में, देश के दुर्दिन में इस महाविद्यालय का संहार हुआ था। पर इसकी उज्ज्वल कीर्ति का प्रकाश छिपने वाली चीज न थी।