पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२६९

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म २८२ लगभग ढाई मील है। यहाँ कनिंघम ने दो शिलालेख पाये थे, जिन में इस स्थान का 'नालन्दा' नाम उल्लेखित है। हुएनत्संग के वर्णन के अनुसार 'नालन्दा' बोध-गया के पवित्र वोध-वृक्ष,से सात योजन अर्थात् उनचास मील और राजगृह से तीस 'ली' अर्थात् कोई पाँच मील उत्तर है। 'बड़गाँव' के सम्बन्ध में यह दूसरी प्रायः ठीक निकली है। हाल की खुदाई में भी यहाँ ऐसे शिलालेख मिले हैं। जिनपर 'नालन्दा' नाम खुदा है । कई ऐसी-ऐसी मुहरें मिली हैं, जिन पर स्पष्ट 'श्री नालन्दा महाविहारीय आर्य-भिक्षुसंघस्य' लिखा हुआ है। आधुनिक नाम 'बड़गाँव' शब्द यहाँ की एक भान इमारत पर जमे हुए 'बई' (बट) वृक्ष से व्युत्पन्न हुआ है। 'बड़गाँव' और 'नानन्द' किन्तु इधर हाल में बड़गाँव' से कुछ उत्तर हटकर पूर्व की ओर चार-पाँच मील की दूरी पर 'नानन्द' नामक एक गाँव का पता चला है । 'नानन्द' भी 'नालन्दा' का विकृत रूप जान पड़ता है। यहाँ भी दूर तक विस्तीर्ण खण्डहर हैं, कई प्राचीन जलाशय भी हैं। हुएनत्संग का बतलाया हुआ 'दूरी का हिसाब भी इस स्थान के सम्बन्ध में बड़गाँव से अधिक ठीक उतरता है। 'नानन्द राज गृह से लगभग ५ मील की ही दूरी पर है । भग्नावस्था में पड़े हुए यहाँ के एक विहार में स्थित बुद्ध की एक बड़ी मूर्ति,बैठी हुई मुद्रा में मिली है। उसके ऊपर कुछ लेख भी हैं। प्रसिद्ध पुरातत्वज्ञ श्री काशीप्रसाद जायसवाल ने उसे पढ़ा है; पर उससे किसी महत्वपूर्ण बात का पता नहीं चलता। श्री. P.C. S. ने इस विषय में 1