पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२७२

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२८५ नालन्दा विश्व-विद्यालय हमें हुएनत्संग, इसिंग, बुकुंग आदि चीनी यात्रियों तथा तिब्बती 'तारानाथ' के विवरणों से ही विशेष सहायता मिलती है। और अब तो खुदाई में बहुत-से ऐसे शिलालेखादि भी मिले हैं, जिनसे महाबिहार-सम्बन्धी कई बातों पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है। श्री महावीर स्वामी तथा उनके एक श्रेष्ठ और प्राचीन शिष्य इन्द्रभूति के सम्बन्ध के कारण जैनी लोग भी अब उस स्थान को तीर्थ समझते हैं। सूत्रकृतांग' सरीखे कुछ जैन-ग्रन्थों में नालन्दा का अच्छा वर्णन है, जिससे मालूम होता है कि ईसवी सन के पहले भी नालन्दा बहुत समृद्ध और समुन्नत नगर था। कल्पसूत्र में लिखा है कि यहाँ भगवान महावीर स्वामी ने चातुर्मास्य बिताया था। इतना ही नहीं, भगवान बुद्ध ने 'संपसादनीयसुत्त और 'केवद्धसुत्त' का प्रवर्तन नालन्दा में ही किया था। हुएनत्संग ने लिखा है-इस स्थान पर एक प्राचीन आम्रवाटिका थी, जिसको ५०० व्यापारियों ने दश कोटि मुद्रा में मोल लेकर बुद्धदेव को समर्पित कर दिया। नालन्दा के 'लेय' नामक एक निवासी के धन, जन, यश और वैभव की बड़ी प्रशंसा थी। यहाँ के 'केवद्ध' नामक एक धनी सज्जन को हम भगवान बुद्ध के सामने नालन्दा के प्रभाव और पवित्रता की बड़ी बड़ाई करते हुए पाते हैं। 'आनन्द' के मत से तो नालन्दा पाटलिपुत्र से भी बढ़कर था, क्योंकि नालन्दा ही भगवान बुद्ध के निर्वाण के लिये उपयुक्त स्थान था, पाटलिपुत्र नहीं । इससे नालन्दा के पाटलिपुत्र से अधिक प्राचीन और श्रेष्ठ होने का परिचय मिलता है। फाहियान के अनुसार सारिपुत्त का