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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२९४

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३०७ नालन्दा विश्वविद्यालय ऊपर हजारों रंगों में प्रतिविम्बित प्रकाश-ये सब मिलकर एक दृश्य की श्रीवृद्धि करते हैं। वस्तु तथा मूर्ति-कला नालन्दा की वस्तु तथा मूर्ति-कला के सम्बन्ध में कुछ कहे विना यह विवरण अधूरा रह जायगा । यहाँ के भवनों की छेकन (Layout. plan) में इतना सौष्ठव है कि आज खोदकर निकाले. गये भानावशेषों की दशा में भी उन्हें देखकर हृदय आनन्दित हो उठता है और उनके बनी हुई दशा का चित्र आप-ही-आप आँखों के आगे खिंच जाता है। एक के बाद एक भवन यहाँ के स्थापति इस खूबी से बनाये गये हैं, मानो सारे विद्यापीठ का नकशा उन्होंने पहले ही से सोच रक्खा हो । कोई भी इमारत ऐसी नहीं है, जो बेजोड़, बेमेल वा कुठार मालूम पड़ती हो । जिस भवन-मालिका के निर्माण में, एक सहस्र वर्ष का लम्बा समय लगा हो, वहाँ ऐसे सोष्ठव का निर्माण पहुँचे हुए शिल्पियों के ही मस्तिष्क का काम है। नालन्दा की खुदाई के पहले भारतीय स्थापल्य के इतिहास के विद्वानों का मत था कि इमारतों में कमानियों, डाटों ( Arches) का प्रयोग भारत ने अरब से सीखा है, पहले से भारतीय वास्तु शिल्पी कमानी के सिद्धान्त से अनभिज्ञ थे। किन्तु नालन्दा के उद्घाटित होने पर यह अनुमान निर्मल सिद्ध हुआ। आज जो चार प्रकार की कमानियाँ अर्थात् गोल, कुबड़ी, नोकदार और समथल-भवनों के निर्माण में व्यवहृत होती हैं, र चारों ही के नमूने यहाँ की इमारतों में मिले हैं। यहाँ की इमा-