बुद्ध और बौद्ध-धर्म संघारामों के चारों ओर ऊँची चहारदीवारी बनाने का उद्देश्य सम्भवतः उन्हें बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित रखना ही होगा। जो हो, नालन्दा पर अन्तिम घोर प्रहार मुसलमानों का हुआ। प्रहार क्या संहार ही हुआ। मुसलमान इतिहासकार 'मिनाज' के अनुसार मगध पर मुसलमानों की चढ़ाई का समय १६६६ ई० है । उसी समय इधर के तीनों विद्यालयों नालन्दा, विक्रमशिला और ओदतपुर का विध्वंस हुआ। तारानाथ से मालूम होता है कि मगध की पहली चढ़ाई में मुसलमानों को निराश होकर भाग जाना पड़ा था, पर दूसरी चढ़ाई में मुहम्मद बख्तियार अचानक बड़ी चढ़ाई के साथ टूट पड़ा । उसके आक्रमण का पता किसी को न था। उस समय मगध के राजा गोविन्दपाल थे। वे बहुत बूढ़े हो गये थे। लड़ाई में वे वीर गति को प्राप्त हुए । फिर तो खूब लूट- पाट मची । उसी समय नालन्दा महाबिहार का विनाश हुआ। बहुत-से भिक्षु मार डाले गये । कुछ विदेशों में भाग गये । अन्ध- तान्त्रिक मत के दुष्प्रभाव से, धर्म-भ्रान्तियों से, व्यभिचार आदि से बौद्ध धर्म उस समय भीतर-ही-भीतर जर्जर हो उठा था। उसकी वह पुरानी शक्ति जीर्ण-शीर्ण हो चुकी थी। इसके अतिरिक्त देश- भर में उस समय उत्पात और अनाचार व्याप्त था। अतएव देश को तत्कालीन स्थिति का अनुसरण करते हुए नालन्दा भी अधः- पतित हुआ। उसके बाद तिव्बती प्रमाण के अनुसार नालन्दा को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न किया गया । "मुद्रितभद्र' नामक एक भिचुक ने वहाँ के चैत्यों और मन्दिरों की मरम्मत कराई होगी।
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